1. जहाँ ज़िंदगी है, वहां उम्मीद है.
2. क्या ज़माना आ गया है… बच्चे अब मां-बाप का कहना नहीं मानते और हर ऐरा-गैरा लेखक बन जाता है. (दो हज़ार साल पहले भी ऐसा होता था!)
3. अगर तुम्हारे पास एक उद्यान और पुस्तकालय है तो तुम्हें किसी और चीज़ की ज़रुरत नहीं है.
4. मनुष्य हजारों वर्षों से ये छः गलतियाँ करता आ रहा है – पहली: यह मानना कि दूसरों को कुचलकर ही आगे बढ़ा जा सकता है. दूसरी: उन चीज़ों की चिंता करना जिन्हें कोई भी न तो बदल सकता है और न ही सुधार सकता है. तीसरी: यह समझना कि जो काम हमारे बस में नहीं है वह नामुमकिन है. चौथी: तुच्छ प्राथमिकताओं को दरकिनार नहीं करना. पांचवीं: मन के परिमार्जन और परिवर्धन को महत्व न देना. छठवीं: दूसरों पर हमारे विचार और जीवनशैली को थोपना.
5. हमें ज़िंदगी कम ही मिलती है पर बेहतर तरीके से बिताई गयी ज़िंदगी की स्मृति शाश्वत है.
6. दर्शन का अध्ययन और कुछ नहीं बल्कि स्वयं को मृत्यु के लिए तैयार करना है.
7. जो बात नैतिक मानदंडों पर खरी न उतरे उससे किसी का हित नहीं सधता भले ही उससे तुम्हें कुछ लाभ हो जाए. यह सोचना ही दुखदाई है कि किसी अपकृत्य से भी कुछ लाभ उठाया जा सकता है.
8. मुसीबत के वक्त अपने बाल नोचना बेवकूफी है. गंजे हो जाने पर दुःख-तकलीफें कम नहीं हो जातीं.
9. सिर्फ विक्षिप्त जन ही नाचते समय गंभीर रह सकते हैं.
10. जन-कल्याण का ध्येय ही सर्वोत्तम विधि है.
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